Saturday, December 5, 2009

कोपनहेगन सम्मेलन एवं विकासशील देश

मित्रो,
दुनिया में ओद्योगीकरण तथा संसाधनों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण आज पर्यावरण इतना प्रदूषित हो गया है कि जलवायु प्राकृतिक न रहकर प्रभावित हो रही है विश्व के विकसित देशों ने पर्यावरण को असंतुलित कर दिया है ,संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस दिशा में सोचना प्रारम्भ किया था , इसी कड़ी में कोपनहेगन में ८ दिसम्बर से १९ दिसम्बर तक जलवायु परिवर्तन विषय पर अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित हो रहा है
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा सहित दुनिया के १९२ देशों के १५००० प्रतिनिधि भाग लेने वाले है अंतर्राष्ट्रीय द्रष्टिकोण से यह सम्मेलन अत्यन्त महत्वपूर्ण है, इसमें लिए जाने वाले फैसलों से आने वाले समय में दुनिया के विकास कि दिशा तय होगी
विकसित देशों की हमेशा से यह नीति रही है कि दुनिया के उपलब्ध संसाधनों का सर्वाधिक उपयोग वे अपने हित में करते है एवं जब पर्यावरण से सम्बंधित विषय आते हें तो विकासशील देशों से ज्यादा अपेक्षा रखते है, वास्तविकता यह हे कि दुनिया कि १२ प्रतिशत आबादी वाले देश दुनिया के ७० प्रतिशत संसाधनों का उपयोग करते है, यह कहाँ का न्याय है?
विकासशील देशों कि अपनी चिंताएं है, देखना यह है कि यह सम्मेलन अमेरिका एवं विकसित राष्ट्रों कि कठपुतली बनेगा , (जेसा हमेशा होता आया है) या जलवायु परिवर्तन कि वास्तविकता को स्वीकार कर सारी दुनिया के लिए नई नीति बनाएगा
नेपाल ने अपनी केबिनेट एवरेस्ट की ऊंचाई पर जाकर की है, तो मालदीव ने समुद्र की गहरी में जाकर गुजरात के लोकप्रिय मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी सरकार का चिंतन शिविर कच्छ के रन ( मरुस्थल )में करके भारत की भी इस विषय में चिंता दर्शाई है, निश्चित ही वह इसके लिए बधाई के पात्र है
आख़िर कब तक हम उर्जा के गैर नवीनीकरणीय श्रोतों का उपयोग करते रहेंगे , हमें सौर उर्जा,जल उर्जा, पशुधन उर्जा जेसे विकल्पों का विचार करना होगा ताकि जलवायु पर भी प्रतिकूल प्रभाव न पड़े साथ ही मानव जीवन एवं प्रकृति की निरंतरता बनी

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