Friday, December 31, 2010

भारतीय कालगणना और नया वर्ष ही विश्व में सर्वश्रेष्ठ है



ना तो जनवरी साल का पहला मास है और ना ही 1 जनवरी पहला दिन।जो आज तक जनवरी को पहला महीना मानते आए है वो जरा इस बात पर विचार करिए।सितंबर,अक्टूबर,नवंबर और दिसंबर क्रम से 7वाँ,8वाँ,नौवाँ और दसवाँ महीना होना चाहिए जबकि ऐसा नहीं है।ये क्रम से 9वाँ,,10वाँ,11वां और बारहवाँ महीना है।हिन्दी में सात को सप्त,आठ को अष्ट कहा जाता है,इसे अङ्ग्रेज़ी में sept(सेप्ट) तथा oct(ओक्ट) कहा जाता है।इसी से september तथा October बना।नवम्बर में तो सीधे-सीधे हिन्दी के "नव" को ले लिया गया है तथा दस अङ्ग्रेज़ी में "Dec" बन जाता है जिससे December बन गया।


ऐसा इसलिए कि 1752 के पहले दिसंबर दसवाँ महीना ही हुआ करता था।इसका एक प्रमाण और है।जरा विचार करिए कि 25 दिसंबर यानि क्रिसमस को X-mas क्यों कहा जाता है???? इसका उत्तर ये है की "X" रोमन लिपि में दस का प्रतीक है और mas यानि मास अर्थात महीना।चूंकि दिसंबर दसवां महीना हुआ करता था इसलिए 25 दिसंबर दसवां महीना यानि X-mas से प्रचलित हो गया।

इन सब बातों से ये निस्कर्ष निकलता है की या तो अंग्रेज़ हमारे पंचांग के अनुसार ही चलते थे या तो उनका 12 के बजाय 10 महीना ही हुआ करता था।साल को 365 के बजाय 345 दिन का रखना तो बहुत बड़ी मूर्खता है तो ज्यादा संभावना इसी बात की है कि प्राचीन काल में अंग्रेज़ भारतीयों के प्रभाव में थे इस कारण सब कुछ भारतीयों जैसा ही करते थे और इंगलैण्ड ही क्या पूरा विश्व ही भारतीयों के प्रभाव में था जिसका प्रमाण ये है कि नया साल भले ही वो 1 जनवरी को माना लें पर उनका नया बही-खाता 1 अप्रैल से शुरू होता है।लगभग पूरे विश्व में वित्त-वर्ष अप्रैल से लेकर मार्च तक होता है यानि मार्च में अंत और अप्रैल से शुरू।भारतीय अप्रैल में अपना नया साल मनाते थे तो क्या ये इस बात का प्रमाण नहीं है कि पूरे विश्व को भारतीयों ने अपने अधीन रखा था।

इसका अन्य प्रमाण देखिए-अंग्रेज़ अपना तारीख या दिन 12 बजे रात से बदल देते है।दिन की शुरुआत सूर्योदय से होती है तो 12 बजे रात से नया दिन का क्या तुक बनता है!!!तुक बनता है।भारत में नया दिन सुबह से गिना जाता है,सूर्योदय से करीब दो-ढाई घंटे पहले के समय को ब्रह्म-मुहूर्त्त की बेला कही जाती है और यहाँ से नए दिन की शुरुआत होती है।यानि की करीब 4-4.30 के आस-पास और इस समय इंग्लैंड में समय 12 बजे के आस-पास का होता है।चूंकि वो भारतीयों के प्रभाव में थे इसलिए वो अपना दिन भी भारतीयों के दिन से मिलाकर रखना चाहते थे इसलिए उनलोगों ने रात के 12 बजे से ही दिन नया दिन और तारीख बदलने का नियम अपना लिया।

जरा सोचिए वो लोग अब तक हमारे अधीन हैं हमारा अनुसरण करते हैं और हम राजा होकर भी खुद अपने अनुचर का,अपने अनुसरणकर्ता का या सीधे-सीधी कहूँ तो अपने दास का ही हम दास बनने को बेताब हैं।
कितनी बड़ी विडम्बना है ये!!!!
    • September रोमन शब्द sept लिया गया है जिसका अर्थ ७ होता है |यदि September सात है तो वह अंग्रेजी कॅलेंडर में, क्रम में नववां महीना कैसे हुआ? और उसी प्रकार, फिर October -दसवां, November --ग्यारहवां, और December बारहवां, कैसे हुए? जानने के लिए ......सप्तांबर, अष्टांबर, नवाम्बर, दशाम्बर’ आपके मनमें, कभी प्रश्न उठा होगा कि अंग्रेज़ी महीनों के नाम जैसे कि, सप्टेम्बर, ऑक्टोबर, नोह्वेम्बर, डिसेम्बर कहीं, संस्कृत सप्ताम्बर, अष्टाम्बर, नवाम्बर, दशाम्बर जैसे शुद्ध संस्कृत रूपोंसे मिलते क्यों प्रतीत होते हैं? विश्व की और विशेषतः युरप की भाषाओं में संस्कृत शब्दों के स्रोत माने जाते हैं।

      ईसवी सन, १७५० के आसपास आज कल उपयोग में लिया जाता कॅलेंडर स्वीकारा गया, जिसे ग्रेगॅरियन कॅलेंडर के नाम से जाना जाता है। उसके पहले ज्युलियन कॅलेंडर उपयोग में लिया जाता था।
      १- पुराने कॅलेंडरों के अनुसार मार्च महीने से ही वर्ष प्रारंभ होता था। यह वस्तुस्थिति ध्यान देने योग्य हैं, क्यों कि, यदि, मार्च महीने से ही वर्ष प्रारंभ हो, तो, सितम्बर सातवां महीना होता है, फिर अक्तुबर आठवां, नवम्बर नववां, और डिसम्बर दसवां महीना होगा।

      २- एक सहज दिखाइ देनेवाला तथ्य भी, मार्च से ही नये वर्ष के प्रारंभ की, पुष्टि करता है। वह है, फरवरी में, हर चार वर्ष में आता हुआ, लिप वर्ष का सुधार। कोई भी सुधार सामान्यतः अंत में ही किया जाता है। बहुत सारी ब्यौपारी पेढियां, वर्ष के अंत में ही, हिसाब बराबर करती हैं। आय-कर(Income Tax)का हिसाब भी, वर्षानुवर्ष डिसम्बर के अंत तक, देना होता है। तो यह प्रश्न कि, फरवरी में ही क्यों, लिप वर्षका सुधार आता है? बडा ही तर्क संगत है। इसका उत्तर कहीं, इतिहास की जमा धूल के नीचे, छिप कर बैठा है। लगता है, कि कभी न कभी तो फरवरी वर्ष का अंतिम महीना रहा होगा। कोइ वर्ष के बीच ही कारण बिना, ऐसा सुधार करे, यह संभव नहीं, मैं तो ऐसा होना तार्किक और वैज्ञानिक दृष्टिसे असंभव मानता हूं। एक और कारण भी स्पष्ट है, कि अन्य माह ३० या ३१ दिन के होते हैं ; फिर क्यूँ , अकेले फरवरी को २८ या २९ दिन देकर पक्षपात किया गया? तो यह फरवरी का लिप वर्ष का सुधार, एक; और २८ या २९ दिनके अवधि का माह होना, दूसरा; यह दोनो तथ्य फरवरी के वर्षान्त माह होने की पुष्टि करते हैं। अर्थात् मार्च कभी तो पहला महीना रहा होगा, यह तथ्य भी इसीसे प्रमाणित होता है।

      ३- तथ्य भी इस के साथ जोडना आवश्यक है, वह यह है, कि, भारतीय शालिवाहन शक का वर्ष गुडी पडवा (वर्ष प्रतिपदा, युगादि)से ही माना जाता है। और हिंदू तिथि और अंग्रेज़ी डेट प्रायः आगे पीछे हुआ करती है। महाराष्ट्र, कर्नाटक सहित दक्षिण में सभी परंपराएं शालिवाहन शक मानती हैं। शालिवाहन शक के वर्ष का प्रारंभ, वर्ष-प्रतिपदा जो मार्च में आती है, उसी से होता है। इस ईसवी सन २०१० के वर्ष में, १६ मार्च को शक संवत १९३२ प्रारंभ हुआ था, और साथ साथ विक्रमी संवत २०६७ भी प्रारंभ हुआ था। युगाब्द का ५१११ वां वर्ष भी इसी दिनसे प्रारंभ हुआ था।

      अब ध्यान में आया होगा, कि क्यों, सितम्बर सातवां, अक्तुबर आठवां, नवम्बर नववां, और डिसम्बर दसवां होने का आभास होता है। वैसे अम्बर अर्थात, आकाश भी संस्कृत शब्द ही है। हो सकता है कि सप्ताम्बर = सप्त+अम्बर का अर्थ संदर्भ भी, आकाश का सातवां भाग इस(एक राशि) अर्थ की व्युत्पत्ति से जुडा हो।

      इंग्लैंड का इतिहास: इंग्लैंड में सन १७५२ तक २५ मार्च को नवीन वर्ष दिन मनाया जाता था। सन १७५२ में पार्लामेंट के प्रस्ताव द्वारा कानून पारित कर, नवीन वर्ष का प्रारंभ १ ली जनवरी को बदला गया था।मार्च २५ को नये वर्षका प्रारंभ मानने के पीछे, क्या ऐतिहासिक कारण हो सकता है? यह भी कहीं इतिहास के अनजाने अज्ञात रहस्यो में खो गया है। आज कुछ अनुमान ही किया जा सकता है। कारण हो सकता है, कि इंग्लैंड का वैदिक गुरुकुल शिक्षा पद्धति और वैदिक पंचांग से जिस वर्ष संबंध टूटा होगा, उस वर्ष वैदिक गणित के अनुसार २५वी मार्च को प्रारंभ होनेवाला, भारतीय नव वर्ष रहा होगा